पैसों के आगे बौना पड़ा हर रिश्ता
संयुक्त परिवार अब कहां बसता
एकल में भी नहीं दिखती अब एकता
आखिर यह आदमी करना क्या चाहता
नहीं रहा मूल्य कोई
संस्कृति, मर्यादा और संस्कारों का
ऐसे में कैसे बच पाएगा
वजूद भारतीय परिवारों का
आधुनिकता के फूहड़पन में
आदमी गया सब भूल
भोग,विलास,मनमर्जी और आजादी के लिए
कुचल दिए प्रेम और श्रद्धा के फूल
पल में बनते, पल में बिगड़ते
जाने कैसे नाते हैं
अपनों के लिए वक्त कहां
ट्वीटर और फेसबुक पर
सब रिश्ते निभाए जाते हैं
इतना मत भाग, थक जाएगा
छोड़ गया जिस आंगन को
वहीं सहारा पाएगा
संयुक्त परिवार में
आजादी कम थी पर सुरक्षा ज्यादा
अटेंशन कम था पर एहसास ज्यादा
जहां नींद के लिए
नहीं खानी पड़ती हैं गोलियां
जहां बिन बुलाए ही
चली आती हैं खुशियां
चिंता, परेशानी से वास्ता नहीं पड़ता
क्योंकि
पूरे परिवार में कोई अधूरा नहीं रहता
विश्व परिवार दिवस, 15 मई के अवसर पर उन चंद खुशनसीबों को बधाई जो पीढ़ियों से साथ रहते आए हैं।
शनिवार, 14 मई 2011
गुरुवार, 5 मई 2011
बस सिर्फ एक दिन मां के लिए, क्यूं
ममता की मूरत है मां
धरा पर ईश्वर की सूरत है मां
बिन मांगी दुआ है मां
नारी का उत्कृष्ट रूप है मां
पूत कपूत सुने हों भले
माता नहीं कुमाता बनती
अपना दर्द न जाहिर करती
कांटों पर चलकर भी हंसती
खुद जागे, बच्चों को सुलाए
खुद से पहले उन्हें खिलाए
खुद की उसे चाह न कोई
प्यार, दुलार निःस्वार्थ लुटाए
आंचल में बच्चों का छुपाकर
उनको यह एहसास दिलाती
जब तक तेरी मां जिंदा है
कौन है जो तुझे हाथ लगाए
बुरी नजर से हमें बचाती
हमारी बलाएं खुद ले जाती
रहें सलामत हम दुनिया में
इसके निस्बत
मां निर्जला व्रत रख लेती
खुद का जीवन होम करके
पाल,पोष कर हमें बढ़ाती
मां की ममता का मोल न कोई
इसलिए है सारी दुनिया कहती
देवी जैसी मां के लिए
हम भी तो कुछ करें
उसकी ममता का मोल न चुका सकें तो
साल में सिर्फ एक दिन माता दिवस मनाकर
कम से कम उसे यूं अपमानित तो न करें
क्योंकि
सबसे धनी वही है भइया
जिसके पास है मइया
08 मई का तथाकथित मदर्स डे था। कितने लोंगो ने दो घड़ी का वक्त निकाल कर अपनी मां के चरणों में बैठकर, उसकी गोद में सिर रखकर उससे बातें कीं। ननिहाल की बातें, रोज सोते समय एक ही लोरी, वही एक ही काल्पनिक राजा, रानी की कहानी की बातें, उसके सुख व दुःख की कोमल यादों की बातें। यादों की इस भूली बिसरी पगडंडी पर डग भरते ही उसकी पथराई आंखें चमक उठती हैं। क्या हम उसे ऐसा सुख देंगे।
धरा पर ईश्वर की सूरत है मां
बिन मांगी दुआ है मां
नारी का उत्कृष्ट रूप है मां
पूत कपूत सुने हों भले
माता नहीं कुमाता बनती
अपना दर्द न जाहिर करती
कांटों पर चलकर भी हंसती
खुद जागे, बच्चों को सुलाए
खुद से पहले उन्हें खिलाए
खुद की उसे चाह न कोई
प्यार, दुलार निःस्वार्थ लुटाए
आंचल में बच्चों का छुपाकर
उनको यह एहसास दिलाती
जब तक तेरी मां जिंदा है
कौन है जो तुझे हाथ लगाए
बुरी नजर से हमें बचाती
हमारी बलाएं खुद ले जाती
रहें सलामत हम दुनिया में
इसके निस्बत
मां निर्जला व्रत रख लेती
खुद का जीवन होम करके
पाल,पोष कर हमें बढ़ाती
मां की ममता का मोल न कोई
इसलिए है सारी दुनिया कहती
देवी जैसी मां के लिए
हम भी तो कुछ करें
उसकी ममता का मोल न चुका सकें तो
साल में सिर्फ एक दिन माता दिवस मनाकर
कम से कम उसे यूं अपमानित तो न करें
क्योंकि
सबसे धनी वही है भइया
जिसके पास है मइया
08 मई का तथाकथित मदर्स डे था। कितने लोंगो ने दो घड़ी का वक्त निकाल कर अपनी मां के चरणों में बैठकर, उसकी गोद में सिर रखकर उससे बातें कीं। ननिहाल की बातें, रोज सोते समय एक ही लोरी, वही एक ही काल्पनिक राजा, रानी की कहानी की बातें, उसके सुख व दुःख की कोमल यादों की बातें। यादों की इस भूली बिसरी पगडंडी पर डग भरते ही उसकी पथराई आंखें चमक उठती हैं। क्या हम उसे ऐसा सुख देंगे।
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