गुरुवार, 5 मई 2011

बस सिर्फ एक दिन मां के लिए, क्यूं

ममता की मूरत है मां
धरा पर ईश्वर की सूरत है मां
बिन मांगी दुआ है मां
नारी का उत्कृष्ट रूप है मां
पूत कपूत सुने हों भले
माता नहीं कुमाता बनती
अपना दर्द न जाहिर करती
कांटों पर चलकर भी हंसती
खुद जागे, बच्चों को सुलाए
खुद से पहले उन्हें खिलाए
खुद की उसे चाह न कोई
प्यार, दुलार निःस्वार्थ लुटाए
आंचल में बच्चों का छुपाकर
उनको यह एहसास दिलाती
जब तक तेरी मां जिंदा है
कौन है जो तुझे हाथ लगाए
बुरी नजर से हमें बचाती
हमारी बलाएं खुद ले जाती
रहें सलामत हम दुनिया में
इसके निस्बत
मां निर्जला व्रत रख लेती
खुद का जीवन होम करके
पाल,पोष कर हमें बढ़ाती
मां की ममता का मोल न कोई
इसलिए है सारी दुनिया कहती
देवी जैसी मां के लिए
हम भी तो कुछ करें
उसकी ममता का मोल न चुका सकें तो
साल में सिर्फ एक दिन माता दिवस मनाकर
कम से कम उसे यूं अपमानित तो न करें
क्योंकि
सबसे धनी वही है भइया
जिसके पास है मइया
08 मई का तथाकथित मदर्स डे था। कितने लोंगो ने दो घड़ी का वक्त निकाल कर अपनी मां के चरणों में बैठकर, उसकी गोद में सिर रखकर उससे बातें कीं। ननिहाल की बातें, रोज सोते समय एक ही लोरी, वही एक ही काल्पनिक राजा, रानी की कहानी की बातें, उसके सुख व दुःख की कोमल यादों की बातें। यादों की इस भूली बिसरी पगडंडी पर डग भरते ही उसकी पथराई आंखें चमक उठती हैं। क्या हम उसे ऐसा सुख देंगे।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुब मुकेश जी। सुना है कई बार कि खुदा हर जगह नहीं रह सकता है इसलिए उसने धरा पर मां को बनाया है।

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  2. Mukesh ji aap senimental ker de rahin hain. jeeven ka her chan maa ka he to hai. hum door hain to bhee maa khush hai, unhe pata hai ke shayed ye hamare liye behtar hai.afsoos kya karin ye chakeri hai to mothers day bhee jinda hai. Girjesh

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