शनिवार, 26 मार्च 2011
'अप्रेषित पत्र' पोस्ट करिये, उत्तर पाकर झूम उठिये
इधर कई महीनों से मेरा पढ़ने का क्रम बंद सा हो गया था। कुछ मेरे आलस्य ने योगदान दिया और कोई अच्छी पुस्तक भी नहीं मिली। खैर, अभी अभी मैंने एक बेहद उत्कृष्ट कृति समाप्त की है। ऐसी किताबें दुर्लभ होती हैं, जो आपके जीवन की दशा दिशा बदलने का अवयव अपने अंदर समाहित किये रहती हैं। 'अप्रेषित पत्र', उनमें से एक है। जीवन के तमाम झंझावातों से निकाल कर 'अप' आपको एक सहज और सरल मार्ग पर ले जाती है, जहां से आप खुशियां ही खुशियां बटोर सकते हैं। जिन्दगी के उन तमाम स्वाभाविक किन्तु जटिल सवालों का निहायत आसान हल इस पुस्तक में उपलब्ध है, जिनको समझते तथा सुलझाते हमारी उम्र निकल जाती है। 'अप' को पढ़ने के बाद आप पाएंगे कि कितने ही मसलों या मुद्दों पर आपका दृष्टिकोण कितना गैरजरूरी था। आध्यात्मिक गुरु टी टी रंग राजन द्वारा लिखी गई यह किताब आपका खोया हुआ आत्मविश्वास लौटाती है। निराशा और हताशा में डूबे लोगों के लिये, यह नई सुबह की पहली किरण है जबकि भटके हुए लोगों के लिये एक आनंदमयी राह। जिंदा, लेकिन मरे हुए लोगों के लिए 'अप्रेषित पत्र' प्राणवायु है। आपको लग सकता है, अरे इसमें कोई नहीं बात नहीं, वही छोटी छोटी बातें हैं, जिनका हम रोजमर्रा ही सामना करते हैं और रोज इसे अपने तरीक से निपटाते भी हैं। लेकिन 'अप' में जीवन के हर सवाल का एक खुशनुमा हल वर्णित है। इसको पढ़ने के बाद चीजों को देखने और उन्हें समझने का आपका नजरिया ही बदल जाएगा। आप चाहें तो आपका पुनर्जन्म भी हो सकता है। भई, मुझे तो ऐसा ही लगा बाकी लोगों का कह नहीं सकते। वैसे भी किताबों का कोई बहुत बड़ा पारखी तो हूं नहीं मैं। बस दो चार किताबें पढ़ ली हैं। कालजयी रचनाओं से तो हमारा संसार अटा पड़ा, कुछ क्षणिक आनंदकारी होती हैं, कुछ अविस्मरणीय। लेकिन कई ऐसी हैं जो आपको सोचने के लिए बाध्य कर देती हैं। अफसोस करूं या फिर खुदकिस्मत समझूं, मुझे अब तक 'द अलकेमिस्ट व अप्रेषित पत्र' ही मिल सकी हैं। अब बात उस माध्यम की जिससे यह पुस्तक कुछ लोगों को मुफ्त में दी गई। पता नहीं कि वे पढ़ेंगे भी या नहीं। वैसे किताब खरीद कर पढ़ो तो मजा और उससे होने वाला लाभ दोगुना हो जाता है। यह पुस्तक मूलरूप से अंग्रेजी भाषा में है। दैनिक भास्कर के एमडी सुधीर अग्रवाल जी ने प्रकाशक को पत्र लिखकर इसका हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने की सलाह दी। और फिर भास्कर परिवार के सदस्यों को कुछ प्रतियां मुहैया कराई हैं। सुधीर जी के इसी व्यवहार और ऐसे ही क्रियाकलापों से साबित होता है कि वे एक अखबार के मालिक, एक व्यवसायी के इतर कुछ और भी हैं। और शायद इसी तरह दैनिक भास्कर भी।
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