मंगलवार, 20 मार्च 2012

सरहद पर होली

सरहद पर दोनों ओर माहौल जलसे जैसा था। दोनों मुल्कों में अपने-अपने जज्बाती गीत बजाए जा रहे थे। पुरजोर आवाज में नारे लगा रहे लोग अपनी-अपनी देशभक्ति का मुजायरा कर रहे थे। कुल जमा भारत-पाकिस्तान सीमा (अटारी-वागा अंतरराष्ट्रीय सीमा) पर परेड देखने आया हर शख़्स देशभक्ति की दरिया में गोते लगा रहा था।

लेकिन तकरीबन 200 मीटर के फासले पर 30 फीट ऊंचे द्वार पर गांधी और जिन्ना के चेहरे उतरे हुए हैं। ठीक एक-दूसरे के सामने हैं मगर नजरें मिलाने की हिम्मत शायद दोनों में भी नहीं। हिन्दुस्तान की तक़सीम के ये दोनों चश्मदीद गवाह हैं, लेकिन आज शायद एक दूसरे से शर्मिंदा हैं। दोनों मुल्कों के सूरत-ए-हाल चीख-चीख कर ये बता रहे हैं कि जिन्ना को न पाक पाकिस्तान मिला और गांधी को न उनके सपनों का भारत।

मैं, अपने तीन सहयोगियों के साथ अमृतसर के लिए निकला था। सरहद की यह मेरी तीसरी यात्रा थी। होली का दिन था, शाम की परेड देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ा था। हाथों में तिरंगा लिए दर्शक बडे़ उत्साहित थे। हों भी क्यों न। सामने पाकिस्तान है! हम भारत के लोग अपने कर्तव्यों के प्रति लगनशील, ईमानदार हों न हों, भावनात्मक मसलों में हमारा जज्बा देखने लायक होता है। ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी के दलदल में गर्दन तक धंसे लोगों में एकता व अखंडता की नदियां बह रही थीं। इसी खास जज्बे से भरी भीड़ ऐसा प्रदर्शन कर रही थी जैसी गेट खोल दिया जाए तो पलक झपकते ही लाहौर, इस्लामाबाद पर कब्ज़ा कर लेगी!

पाकिस्तान से उठते नारों का उससे दुगनी तेज आवाज में जवाब देने का प्रयास किया जा रहा था। इस तरफ बिंदास युवतियां, महिलाएं गीतों पर नृत्य कर रही थीं। पर जीरो लाइन के उस पार लोग कम थे। खासकर महिलाएं। पर्दे की ओट से संसार देखने की आदी वे अपने स्थान पर बैठ कर अपने पुरुष देशवासियों का साथ निभा रही थीं। शायद उनका समाज सड़क पर बेहुदे प्रदर्शन की इजाज़त नहीं देता।

एक-दूसरे को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए पैर पटकते बीएसएफ और पाकिस्तानी रेंजर्स के जवान अपने-अपने झंडे उतारने लगे। इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी झेलने वाले दो मुल्कों की सरहद पर यह तमाशा देख कर सूरज भी डूबने लगा। जाते-जाते वह जैसे हमें लानत दे रहा था कि अलग-अलग धरती पर भी सकून से नहीं रह पाते। मुझे देखो, मैं उगता भारत में हूं, छिपता पाकिस्तान में। पाकिस्तान में छिपे बगैर हिन्दुस्तान में सवेरा क्या संभव है?

खैर, बैंड-बाजा-बारात के माहौल में शक्ति प्रदर्शन का दिखावा खत्म हुआ। देश भक्ति के ज्वर में जो अभी तक तप रहे थे, वे रुख़सत होने लगे।

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