शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

चूहों ने बुलाई आपात बैठक, लोगों की परेशानी पर शहर से माफी मांगी

अब तक के सृष्टिकाल में यह दूसरी ऐसी मीटिंग, इससे पहले बिल्ली के आतंक से छुटकारा पाने के लिए जुटे थे. तब सवाल उनके अस्तित्व का था, अब उनकी इमेज का. शहर के सारे चूहे एक जगह इकट्ठा होते हैं और शुरू होता उनके राजा का संबोधन।

चूहों का राजा: आप सब को अचानक यहां इस बुलाना पड़ा। हमारी छवि और साख को बट्टा लगाने की साजिश हुई है. हम पर गिल फ्लाईओवर गिराने का बड़ा आरोप लगाया गया है. कहा गया कि पूरा लुधियाना शहर हमारी वजह से तकरीबन एक महीने से जाम झेल रहा है. हमारी जाति-बिरादरी के लिए यह चिंताजनक है. जो अपराध हमने किया ही नहीं, उसके लिए हमें बदनाम किया जा रहा है.

तभी एक नवयुवक चूहा तैश में खड़ा हुआ. 'क्षमा करें महाराज! शहर के लोग जाम से परेशान हैं, इससे हमारा क्या लेना-देना? हमने क्या किया?'

'तुम नौजवानों की यही समस्या है. बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते हो. अरे भाई! देखा नहीं। कितनी आसानी से हमारे ऊपर इल्जाम लगा दिया गया कि चूहों ने नीचे की मिट्टी खोद डाली, इसलिए पुल की रिटेनिंग वाॅल ढह गई.', सभा में आए उम्रदराज चूहे ने मसले को स्पष्ट करने की कोशिश की.

'हम तो इस धरती पर कब से रह रहे हैं, जमीन खोदना हमारा स्वाभाव है. ऐसा आरोप हमारे समुदाय पर पहले कभी तो नहीं लगा? कि कोई पुल हमारी वजह से गिर गया हो. हां, रेलवे पटरी खोदने तक की बात तो खैर और है.', उसी नौजवान ने अपनी बात थोड़ी मजबूती से रखी.

'तुम नहीं समझोगे। अभी दुनिया ही कितनी देखी है तुमने? आखिर देश चला रहे नेताओं, अफसरों की भी तो कोई फितरत होती है. हर घटना-दुर्घटना के लिए आरोप दूसरों पर मढ़ देने की.',  एक बुजुर्ग चूहे ने अपने जीवन का अनुभव बांटना चाहा।

एक तेजतर्रार चूहे से रहा नहीं गया. बोला- 'सिर्फ चूहा दौड़ में शामिल होने से काम नहीं बनता। ये नेता-अधिकारी दूसरे पर आरोप ही लगाएंगे या अपने ही शहर के लोगों को ट्रैफिक जाम से राहत दिलाने के लिए कोई ठोस कदम भी उठाएंगे? लोग परेशान हैं तो ब्रिज के रिपेयर में दोगुनी लेबर, मशीनरी क्यों नहीं लगा देते?'

'सही तो है. पहले निर्माण में कमीशन बंदरबांट, भ्रष्टाचार और अब रिपेयरिंग में हीलाहवाली। शहरियों की इतनी ही चिंता है इन्हें तो पुल चालू कराने के लिए दिन-रात एक क्यों नहीं कर देते?', चूहों की मंडली में से किसी ने हां में हां मिलाई।

'भाग-दौड़ में तो कमी नहीं दिख रही है, रात-दिन भी एक कर ही रहे हैं, लेकिन नेताओं, आला अफसरों को बहुत कुछ देखना है ना. कंपनी जिसने पुल बनाया, उस पर कोई आंच न आने पाए और ठेकेदार भी न फंसे? आखिरकार इन लोगों ने 'सरकारी सिस्टम के मुताबिक' ही तो काम किया था.', राजा के मंत्री सा दिखने वाले चूहे ने अपनी बात रखी तो कुछ क्षण के लिए पूरी सभा गंभीर हो गई.

तटस्थ भाव रखने वाले एक चूहे ने मौन तोड़ा। कहा, 'और नहीं तो क्या? डीसी साहब ने घटना होते ही जांच कमेटी बना दी. बस स्टैंड शिफ्ट करने का आदेश दे दिया। ट्रैफिक पुलिस वाले इस तपती-चलती-चुभती गर्मी में सड़कों पर जूझ रही है ताकि लोगों को कम से कम दिक्कत हो. नगर निगम का पूरा अमला अतिक्रमण हटाने में लगा है. अब कोई और कितना करेगा?'

'... लेकिन जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आ पाई? दानामंडी अस्थाई बस स्टैंड पर एक भी बस जा ही नहीं रही है? एंक्रोचमेंट की कोख से एक भी सड़क सही सलामत नहीं निकली। इन सबका क्या?', उम्र और कद में सबसे छोटे चूहे की इस हाजिर जवाबी से हर कोई दंग रह गया. 

सभा में कानाफूसी शुरू हो गई. एक अजीब सा तनावपूर्ण माहौल बनने लगा तभी सबसे बुजुर्ग चूहा खड़ा हुआ. बोला, ' तुम लोग दुनियादारी नहीं जानते, राजनीति नहीं समझते। नेताओं की मजबूरी नहीं देखते? उन्हें दोनों को साधना है. जाम से परेशान जनता और उन्हें भी, जिनकी कर्मठता से पुल का ये हाल हुआ.फिर अगले साल चुनाव भी आ रहे हैं. ऐसे में दोनों पक्ष जरूरी हैं. किसी को भी नाराज नहीं किया जा सकता है.'

'भले ही शहर की ऐसी की तैसी हो जाए. कोई तंत्र अपना काम करे न करे, हालात चाहे बेकाबू हो जाए, साफ हवा-पानी, इलाज सुलभ हो न हो, आम इंसान सुरक्षित महसूस करे न करे. बस नेतागीरी और अफसरी चमकती रहनी चाहिए?', किसी चूहे का सब्र कुछ इस तरह से टूटा।  

यह तीखा सवाल पूरी सभा से था, पर जवाब दिया वयोवृद्ध चूहे ने ही. 'साहबों-हाकिमों की पहली जवाबदेही तो जनता के प्रति ही है. उनकी सहूलियत हर हाल में पहली प्राथमिकता होनी ही चाहिए। लेकिन जन समस्याओं का इतना आसान और जल्दी समाधान हो जाए तो फिर सियासत कैसे फूले-फलेगी भइया? हमारी राजनीति और सरकारी व्यवस्था में आम आदमी अजर-अमर है. वह रोज जीता है, रोज मरता है. बस कभी मर ता नहीं। उसे कभी कुछ नहीं होता।

'... तो इस राजनीति में हमें क्यों घसीटा जा रहा, नाहक ही हमारी बिरादरी को बदनाम किया जा रहा है'., बहुत देर से धैर्य साधे बैठे नौजवान चूहे ने टोका।

संयम का परिचय देते हुए बूढ़ा चूहा फिर बोला, 'दूसरों को बदनाम करने में ही तो इन नेताओं का नाम होता है. ये सरोकारों, संस्कारों पर भाषण अच्छा देते हैं, किन्तु खुद कभी किसी बात की नैतिक जिम्मदारी नहीं लेते हैं. जनसेवा की इस नायाब परंपरा में अफसर अपना पूरा 'योगदान' देते हैं. किसकी हिम्मत जो भारतीय लोकतंत्र के इस 'पावन गठबंधन' के गले में 'घंटी' बांधे?'

तमाम तर्क-वितर्क, वाद-विवाद के बाद अब बारी थी राजा की. 'अंतहीन बहस है. बिरादरी की पिछली बैठक भी ऐसे ही घंटी बांधने के मुद्दे पर बिना नतीजा खत्म हुई थी. खैर, इस बार हमारी छवि को धक्का लगा है, इसलिए हमें लुधियानावासियों को हो रही परेशानी के लिए माफी मांगनी चाहिए. हम माफी मांगते भी हैं, भले ही पुल कमजोर करने में हमारी कोई भूमिका नहीं है', राजा ने लगभग फैसले सुनाने के अंदाज में कहा. 

अब तक इस गोपनीय बैठक की गुप्त खुफिया सूचना बड़े साहब के पास पहुंच चुकी थी. सरकारी तंत्र के सुरक्षाबल चौकस हुए. सभास्थल पर अचानक से बूटों और लाठियों की खटपट बढ़ने लगी. तभी सारे चूहे चिचियाते हुए तितर-बितर हो जाते हैं.

अब इसकी पृष्ठभूमि भी समझ लीजिए...

दरअसल, बात जून 2018 की है. मैं लुधियाना दैनिक भास्कर में संपादक था. शहर की लाइफलाइन गिल फ्लाईओवर को बंद हुए तकरीबन एक महीना से ऊपर हो गया था. पूरा शहर एक तरह से चोक था. पुल रिपेयर की तीन डेडलाइन निकल चुकी थी. लापरवाही और लालफीताशाही का आलम यह था कि पुल चालू करने को लेकर जिला प्रशासन अब कोई नई समयसीमा देने की हालत में नहीं था. शासन-प्रशासन के मुताबिक चूहों ने मिट्टी खोद डाली, इसलिए रिटेनिंग वाॅल ढह गई और पुल को आवाजाही के लिए बंद करना पड़ा. रिपेयर का काम है कि खत्म ही नहीं हो रहा था और शहर के लोग जाम से हलकान थे. तब अफसरों और सरकारी सिस्टम को जगाने के लिए खबर को इस तरह एक व्यंग्य के रूप में लिखा गया था.



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