रविवार, 12 अक्टूबर 2025

चार यार... और चार जीवन यात्राएं


संदीप, मनीष, मुकेश और दूसरे फ्रेम में उदय। चार जीवन यात्राएं सुनाती दो तस्वीरें। मनीष और संदीप अच्छे पत्रकारों में शुमार हैं, उससे भी अहम कि मेरे बेहद अजीज, करीबी और भरोसे के मित्र हैं. रिश्तों पर बरसों के धूल तो जमी थी, लेकिन जब 10-12 साल बाद मिले तब दोस्ती में वही ताजगी, अपनापन और मिठास मिली।

मनीष और मैं अमर उजाला, मेरठ के साथी हैं, 2004 से 2007 तक मैं वहीं था. फिर मैं दैनिक भास्कर चला गया और मनीष, दैनिक जागरण नोएडा। मनीष, एक बहुत गंभीर और गहरी सोच वाले पत्रकार हैं.

ऐसे ही संदीप, छोटे भाई जैसे हैं. एक शांत, आत्मीय और बुद्धिजीवी पत्रकार। संदीप 2012 में मिले जब मैं लुधियाना से ट्रांसफर होकर पानीपत भास्कर आया और वह अंबाला भास्कर में थे. कुछ वक्त गुजरा, संदीप हिंदुस्तान के हो गए. दोनों दिग्गज तब से इन्हीं मीडिया संस्थानों में बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. इतने सालों में हमारी सूरत, सीरत तकरीबन वैसे ही हैं, बस मैं और मनीष सफेद हो गए, लेकिन संदीप अभी भी कलरफुल बने हुए हैं!

फ्रेम में लास्ट में उदय हैं. लुधियाना भास्कर लाॅन्चिंग 2007 के मेरे साथी। रहवासी उत्तर के हैं पर विचार और राह दक्षिण की पकड़ ली. पढ़ने-लिखने और अपनी ही धुन में रहने वालों में से हैं. पंजाब में हम लोगों का चार मित्रों का जबरदस्त ग्रुप था. चार अलग-अलग उम्र, सोच-विचार और पृष्ठभूमि से, लेकिन हमारे बीच पटी बहुत अच्छी. अब भी वही बात है, बस वक्त का तकाजा है कि एक बार बिछड़े तो फिर साथ काम करने का मौका नहीं मिला. उदय भी दैनिक जागरण में सेवाएं दे रहे हैं. बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.


छोटी सी भेंट-मुलाकात समय के तहखाने में बंद जाने ही कितनी बातों को रिफ्रेश कर गई. मनीष, संदीप आप दोनों का बहुत बहुत आभार, अभिनंदन. आखिर में बस इतना ही दोस्तों, संबंधों में धूल झाड़ते रहिए...

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