रविवार, 14 मार्च 2010

नव गान

नौ से नाता गहरा सही, पर
दस का दम कुछ कम तो नहीं
मंजिल पाने का आनंद अपार,मगर
चलते रहने की अनुभूति कम तो नहीं
आओ जीवन अपना सफर बनाएं
नूतन वर्ष खड़ा सामने
बढ़कर उसको गले लगाएं
नई उमंगें, नई तरंगें, नई चुनौतियां
मन में नई आशाएं
नूतन वर्ष खड़ा सामने
बढ़कर उसको गले लगाएं
क्या टूटा, क्या पीछे छूटा
रहा नहीं अब इसमें रस
पीछे मुड़कर कभी किसी को
नहीं मिला कोई नया पथ
आओ मिलकर राह बनाएं
नूतन वर्ष खड़ा सामने
बढ़कर उसको गले लगाएं
कहीं रुकना नहीं, कभी थकना नहीं
कहीं झुकना नहीं, पीछे हटना नहीं
आओ हार को जीत बनाएं
नूतन वर्ष खड़ा सामने
बढ़कर उसको गले लगाएं

सोमवार, 8 मार्च 2010

आरक्षण नहीं, अधिकार चाहिए

सुरक्षा नहीं, माहौल चाहिए
दया नहीं, अवसर चाहिए
प्रतिस्पर्धा नहीं, समानता चाहिए
शिकायत नहीं, समाधान चाहिए
सवाल नहीं, जवाब चाहिए
पुरुषों की सहचरी हैं, अनुचरी नहीं
महिलाएं भी चल सकती हैं कंधे से कंधा मिलाकर
सहारा नहीं, बस यही सोच चाहिए
महिलाओं को आरक्षण नहीं, अधिकार चाहिए
तिरस्कार नहीं, आत्मसम्मान चाहिए
हत्या (मादा भ्रूण) नहीं, जिंदगी चाहिए
कैद नहीं, खुला संसार चाहिए
बेटा.बेटी हैं एक समान
नारा नहीं, व्यवहार चाहिए
महिलाओं को आरक्षण नहीं, अधिकार चाहिए
भागीदारी नहीं, बराबरी चाहिए
भेदभाव रहित घर, समाज चाहिए
कल नहीं, बदला हुआ आज चाहिए
हमदर्दी नहीं, हमख्याल चाहिए
महिलाओं को आरक्षण नहीं, अधिकार चाहिए

रविवार, 17 जनवरी 2010

श्रद्धा सुमन

वैसे तो ज्योति बसु जैसे पुरोधा पर कलम उठाने की मेरी हैसियत नहीं लेकिन श्रद्धा सुमन अर्पित तथा संवेदना व्यक्त करने के लिए शायद इसकी दरकार भी नहीं। ९५ वर्षीय ज्योति बाबू का 17 जनवरी, 2010 को निधन से वामपंथ के एक युग का अंत हो गया। हालांकि उनमें कुछ करने या और जीने की लालसा शायद ही रही हो लेकिन लैंपपोस्ट के बुझने से राह से भटकने की संभावना प्रबल हो जाती है। बसु की विदाई किसान,गरीब और श्रमिक वर्ग के लिए बहुत बड़ी क्षति है। ऐसे नेता को नमन ...

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

ब्लाग की दुनिया

सबसे पहले ब्लाग की दुनिया में मैं अपना स्वागत करना चाहूंगा। और उन लोगों से क्षमा,जो पहले से ही इस दुनिया में हैं,क्योंकि इससे पहले मेरी नजर में ब्लागिंग सबसे बकवास काम था और ब्लागर्स फालतू। मुझे अपने आपसे करीब करीब एक साल तक लड़ना पड़ा। खैर अब तो मैं यह कहूंगा कि सभी को अपना एक ब्लाग बनाना चाहिए। खासकर पत्रकार बंधुओं को। विचारों को शब्द देने का इससे अच्छा तथा आधुनिक तरीका और कहां। विचारों का मुक्त प्रवाह।