शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

चूहों ने बुलाई आपात बैठक, लोगों की परेशानी पर शहर से माफी मांगी

अब तक के सृष्टिकाल में यह दूसरी ऐसी मीटिंग, इससे पहले बिल्ली के आतंक से छुटकारा पाने के लिए जुटे थे. तब सवाल उनके अस्तित्व का था, अब उनकी इमेज का. शहर के सारे चूहे एक जगह इकट्ठा होते हैं और शुरू होता उनके राजा का संबोधन।

चूहों का राजा: आप सब को अचानक यहां इस बुलाना पड़ा। हमारी छवि और साख को बट्टा लगाने की साजिश हुई है. हम पर गिल फ्लाईओवर गिराने का बड़ा आरोप लगाया गया है. कहा गया कि पूरा लुधियाना शहर हमारी वजह से तकरीबन एक महीने से जाम झेल रहा है. हमारी जाति-बिरादरी के लिए यह चिंताजनक है. जो अपराध हमने किया ही नहीं, उसके लिए हमें बदनाम किया जा रहा है.

तभी एक नवयुवक चूहा तैश में खड़ा हुआ. 'क्षमा करें महाराज! शहर के लोग जाम से परेशान हैं, इससे हमारा क्या लेना-देना? हमने क्या किया?'

'तुम नौजवानों की यही समस्या है. बस अपनी ही दुनिया में खोए रहते हो. अरे भाई! देखा नहीं। कितनी आसानी से हमारे ऊपर इल्जाम लगा दिया गया कि चूहों ने नीचे की मिट्टी खोद डाली, इसलिए पुल की रिटेनिंग वाॅल ढह गई.', सभा में आए उम्रदराज चूहे ने मसले को स्पष्ट करने की कोशिश की.

'हम तो इस धरती पर कब से रह रहे हैं, जमीन खोदना हमारा स्वाभाव है. ऐसा आरोप हमारे समुदाय पर पहले कभी तो नहीं लगा? कि कोई पुल हमारी वजह से गिर गया हो. हां, रेलवे पटरी खोदने तक की बात तो खैर और है.', उसी नौजवान ने अपनी बात थोड़ी मजबूती से रखी.

'तुम नहीं समझोगे। अभी दुनिया ही कितनी देखी है तुमने? आखिर देश चला रहे नेताओं, अफसरों की भी तो कोई फितरत होती है. हर घटना-दुर्घटना के लिए आरोप दूसरों पर मढ़ देने की.',  एक बुजुर्ग चूहे ने अपने जीवन का अनुभव बांटना चाहा।

एक तेजतर्रार चूहे से रहा नहीं गया. बोला- 'सिर्फ चूहा दौड़ में शामिल होने से काम नहीं बनता। ये नेता-अधिकारी दूसरे पर आरोप ही लगाएंगे या अपने ही शहर के लोगों को ट्रैफिक जाम से राहत दिलाने के लिए कोई ठोस कदम भी उठाएंगे? लोग परेशान हैं तो ब्रिज के रिपेयर में दोगुनी लेबर, मशीनरी क्यों नहीं लगा देते?'

'सही तो है. पहले निर्माण में कमीशन बंदरबांट, भ्रष्टाचार और अब रिपेयरिंग में हीलाहवाली। शहरियों की इतनी ही चिंता है इन्हें तो पुल चालू कराने के लिए दिन-रात एक क्यों नहीं कर देते?', चूहों की मंडली में से किसी ने हां में हां मिलाई।

'भाग-दौड़ में तो कमी नहीं दिख रही है, रात-दिन भी एक कर ही रहे हैं, लेकिन नेताओं, आला अफसरों को बहुत कुछ देखना है ना. कंपनी जिसने पुल बनाया, उस पर कोई आंच न आने पाए और ठेकेदार भी न फंसे? आखिरकार इन लोगों ने 'सरकारी सिस्टम के मुताबिक' ही तो काम किया था.', राजा के मंत्री सा दिखने वाले चूहे ने अपनी बात रखी तो कुछ क्षण के लिए पूरी सभा गंभीर हो गई.

तटस्थ भाव रखने वाले एक चूहे ने मौन तोड़ा। कहा, 'और नहीं तो क्या? डीसी साहब ने घटना होते ही जांच कमेटी बना दी. बस स्टैंड शिफ्ट करने का आदेश दे दिया। ट्रैफिक पुलिस वाले इस तपती-चलती-चुभती गर्मी में सड़कों पर जूझ रही है ताकि लोगों को कम से कम दिक्कत हो. नगर निगम का पूरा अमला अतिक्रमण हटाने में लगा है. अब कोई और कितना करेगा?'

'... लेकिन जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आ पाई? दानामंडी अस्थाई बस स्टैंड पर एक भी बस जा ही नहीं रही है? एंक्रोचमेंट की कोख से एक भी सड़क सही सलामत नहीं निकली। इन सबका क्या?', उम्र और कद में सबसे छोटे चूहे की इस हाजिर जवाबी से हर कोई दंग रह गया. 

सभा में कानाफूसी शुरू हो गई. एक अजीब सा तनावपूर्ण माहौल बनने लगा तभी सबसे बुजुर्ग चूहा खड़ा हुआ. बोला, ' तुम लोग दुनियादारी नहीं जानते, राजनीति नहीं समझते। नेताओं की मजबूरी नहीं देखते? उन्हें दोनों को साधना है. जाम से परेशान जनता और उन्हें भी, जिनकी कर्मठता से पुल का ये हाल हुआ.फिर अगले साल चुनाव भी आ रहे हैं. ऐसे में दोनों पक्ष जरूरी हैं. किसी को भी नाराज नहीं किया जा सकता है.'

'भले ही शहर की ऐसी की तैसी हो जाए. कोई तंत्र अपना काम करे न करे, हालात चाहे बेकाबू हो जाए, साफ हवा-पानी, इलाज सुलभ हो न हो, आम इंसान सुरक्षित महसूस करे न करे. बस नेतागीरी और अफसरी चमकती रहनी चाहिए?', किसी चूहे का सब्र कुछ इस तरह से टूटा।  

यह तीखा सवाल पूरी सभा से था, पर जवाब दिया वयोवृद्ध चूहे ने ही. 'साहबों-हाकिमों की पहली जवाबदेही तो जनता के प्रति ही है. उनकी सहूलियत हर हाल में पहली प्राथमिकता होनी ही चाहिए। लेकिन जन समस्याओं का इतना आसान और जल्दी समाधान हो जाए तो फिर सियासत कैसे फूले-फलेगी भइया? हमारी राजनीति और सरकारी व्यवस्था में आम आदमी अजर-अमर है. वह रोज जीता है, रोज मरता है. बस कभी मर ता नहीं। उसे कभी कुछ नहीं होता।

'... तो इस राजनीति में हमें क्यों घसीटा जा रहा, नाहक ही हमारी बिरादरी को बदनाम किया जा रहा है'., बहुत देर से धैर्य साधे बैठे नौजवान चूहे ने टोका।

संयम का परिचय देते हुए बूढ़ा चूहा फिर बोला, 'दूसरों को बदनाम करने में ही तो इन नेताओं का नाम होता है. ये सरोकारों, संस्कारों पर भाषण अच्छा देते हैं, किन्तु खुद कभी किसी बात की नैतिक जिम्मदारी नहीं लेते हैं. जनसेवा की इस नायाब परंपरा में अफसर अपना पूरा 'योगदान' देते हैं. किसकी हिम्मत जो भारतीय लोकतंत्र के इस 'पावन गठबंधन' के गले में 'घंटी' बांधे?'

तमाम तर्क-वितर्क, वाद-विवाद के बाद अब बारी थी राजा की. 'अंतहीन बहस है. बिरादरी की पिछली बैठक भी ऐसे ही घंटी बांधने के मुद्दे पर बिना नतीजा खत्म हुई थी. खैर, इस बार हमारी छवि को धक्का लगा है, इसलिए हमें लुधियानावासियों को हो रही परेशानी के लिए माफी मांगनी चाहिए. हम माफी मांगते भी हैं, भले ही पुल कमजोर करने में हमारी कोई भूमिका नहीं है', राजा ने लगभग फैसले सुनाने के अंदाज में कहा. 

अब तक इस गोपनीय बैठक की गुप्त खुफिया सूचना बड़े साहब के पास पहुंच चुकी थी. सरकारी तंत्र के सुरक्षाबल चौकस हुए. सभास्थल पर अचानक से बूटों और लाठियों की खटपट बढ़ने लगी. तभी सारे चूहे चिचियाते हुए तितर-बितर हो जाते हैं.

अब इसकी पृष्ठभूमि भी समझ लीजिए...

दरअसल, बात जून 2018 की है. मैं लुधियाना दैनिक भास्कर में संपादक था. शहर की लाइफलाइन गिल फ्लाईओवर को बंद हुए तकरीबन एक महीना से ऊपर हो गया था. पूरा शहर एक तरह से चोक था. पुल रिपेयर की तीन डेडलाइन निकल चुकी थी. लापरवाही और लालफीताशाही का आलम यह था कि पुल चालू करने को लेकर जिला प्रशासन अब कोई नई समयसीमा देने की हालत में नहीं था. शासन-प्रशासन के मुताबिक चूहों ने मिट्टी खोद डाली, इसलिए रिटेनिंग वाॅल ढह गई और पुल को आवाजाही के लिए बंद करना पड़ा. रिपेयर का काम है कि खत्म ही नहीं हो रहा था और शहर के लोग जाम से हलकान थे. तब अफसरों और सरकारी सिस्टम को जगाने के लिए खबर को इस तरह एक व्यंग्य के रूप में लिखा गया था.



गुरुवार, 5 मई 2022

सरदार! हमने आपका राशन खाया है

...तो अब ये महंगाई तुझे खाएगी?

अरे! ओ सांभा! रामगढ़ की क्या रिपोर्ट है

बहुत शानदार सरदार। 

GST उगाही अब तक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। जुलाई, 2017 में जब से आपने इसे लागू किया तब से पहली बार इस अप्रैल में 1.68 लाख करोड़ रुपए की टैक्स वसूली हुई। यही नहीं, तकरीबन 33.5% की ग्रोथ के साथ ग्रॉस टैक्स कलेक्शन(वित्तीय वर्ष अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक) 27.07 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। यह हमारे बजट अनुमान से भी करीब 5 लाख करोड़ ज्यादा है सरदार।

इसमें डायरेक्ट टैक्स(इनकम+ काॅर्पोरेट टैक्स) की हिस्सेदारी 14.10 लाख करोड़ रुपए है। लगभग 49% की दर से इसका विकास हुआ। यह भी हमारे अनुमान से 3 लाख करोड़ ज्यादा है। अप्रत्यक्ष कर (एक्साइज) वसूली में 20 फीसद की ग्रोथ दर्ज की गई है। कुल मिलाकर रामगढ़ वाले हमारा खजाना तबीयत से भर रहे हैं सरदार।

बस, थोड़े त्रस्त हैं बेचारे। 

कह रहे थे- महंगाई ने बेहाल कर दिया है। पेट्रोल 122 रुपए/लीटर, सिलेंडर 1000 का, खाने-पीने के चीजों में आग लगी है। आलू, प्याज, टमाटर के बाद नींबू ने भी निचोड़ लिया। कमाने वाला एक, खाने वाले अनेक और ऊपर से चौतरफा महंगाई डायन बहुत नाइंसाफी है सरदार।

हूं। अच्छा रामगढ़ के चमचे, तू ये बता-

एक लीटर खाने का तेल, एक किलो नमक, एक किलो चना और घर के हर सदस्य के हिसाब से 5 किलो गेहूं/चावल जो मुफ्त में मिल रहा वो? क्या है वो? 

...और तो और तेरे छोटे सरदार ‘जोगिया’ ने दोबारा गद्दी संभालते ही फ्री अनाज की स्कीम को तीन महीने के लिए और बढ़ा दिया है। मुफ्त गैस कनेक्शन का घर-घर में 'उज्जाला' कर दिया, उसका कुछ नहीं?

अरे, ये रामगढ़ वाले न। मिडिल क्लास की मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाएंगे! 

यहां देश का नाम हो रहा। दुनिया में हमारा डंका बज रहा है। गंगा भले ही सूख रही हो, प्रदूषित हो रही हो, विकास की नदी अपने ऊफान पर है। भारत विश्व गुरू बनने वाला है और इन्हें, दो जून की रोटी की ही पड़ी रहेगी। देशविरोधियों से इनका बहुत याराना लगता है!

रामगढ़ वालो! इस महंगाई के ताप से तुम्हें िसर्फ एक ही चीज बचा सकती है और वो है खुद महंगाई।

जी, सरदार। और आपने तो कह ही दिया कि ये रतनगढ़, राजगढ़, देवगढ़, जूनागढ़, चुनारगढ़ और भवानीगढ़ वाले डीजल-पेट्रोल पर वैट नहीं घटा रहे, नहीं तो कीमतें इतनी गिर जाएं कि खुद ओपेक(देश) हमसे खरीदने लगे।


कितने आदमी थे?

आदमी नहीं, बुलडोजर थे सरदार।

बुलडोजर! हमारे रामगढ़ में बुलडोजर।

जी, सरकार। 

अब यहां से पच्चास पच्चास कोस दूर जब कोई बच्चा रोता है तो उसकी मां कहती हैसो जा नहीं तो बुलडोजर आ जाएगा!

और फिर भी तुम घोड़े पर बैठकर दुम दबाकर भाग आए।

क्या सोचा था? सरदार खुश होगा, इनाम में बुजडोजर देगा।

 हम्म। अब तेरा क्या होगा कालिया?

सरदार! हमने आपका राशन खाया है।

...तो अब ये महंगाई तुझे खाएगी। हाहा..।

अरे, ओ सांभा

होली कब है कब है होली?

सरदार! 

छोटी वाली इसी दिसंबर में गुजरात में और 2023 में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और नार्थ ईस्ट में।

फिर 2024 में महाहोली। एकदम लट्‌ठमार वाली सरकार।

अरे, ये मोटा सरदार कहां मर गया?

सरदार, वो तो एक के एक बाद होली की तैयारियों में व्यस्त हैं, उसी की रणनीति को लेकर आज मीटिंग बुलाई है, इसलिए वह रतनगढ़ के दौर पर हैं।

हम्म

तभी गब्बर सिंह अपने हाथ पर चढ़ रही चींटी काे मसल दिया गांव से आंखों में हजारों सपने लिए शहर जा रहा एक और अहमद बेकारी, बेरोजगारी की भीड़ में कहीं खो गया। इसी के साथ एक और रहीम चाचा की जिंदगी में सन्नाटा छा जाता है

(डिस्क्लेमर- यह कथानक काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है। इसका किसी मृत या जीवित व्यक्ति, भूत या प्रेतात्माओं, सूक्ष्मात्माओं से कोई वास्ता नहीं है। फिर भी यदि कोई शख्सियत, दल-संगठन, समाज, समुदाय, संस्था खुद को रत्तीभर भी जुड़ा हुआ या आहत महसूस करती है तो वो बस एक संयोग मात्र है।)

शुक्रवार, 25 मार्च 2022

बाईलाइन:  मेरा गांव शुद्धता, सत्यता की गारंटीहै, शहर तुम मि...

बाईलाइन:  मेरा गांव शुद्धता, सत्यता की गारंटी, शहर तुम मि...:   मेरा गांव शुद्धता, सत्यता की गारंटी है, शहर तुम मिलावट का गाेरखधंधा... आज बस यूं ही, गांव याद आ गया। सच तो ये है, शहर शहर भटकते 25 साल ग...

 मेरा गांव शुद्धता, सत्यता की गारंटी, शहर तुम मिलावट का गाेरखधंधा...

आज बस यूं ही, गांव याद आ गया। सच तो ये है, शहर शहर भटकते 25 साल गुजर गए, सड़क छोड़ती वो पगडंडी आज भी वैसे ही महकती है। उसी अपनेपन से बुलाती है। हमने गांव छोड़ा, गांव हमें आज भी पकड़े हुए है। नामुराद शहरों ने तो कभी अपनाया ही नहीं। पेड़ों से छनकर आती चटक धूप, बदन में सिहरन बनकर दौड़ती अलसुबह की वो ठंडी पुरवाई, झर झर भिगोते आषाढ़-सावन, हडि्डयों को बर्फ कर देने वाली पूस की रात और मदमस्त करने वाला माघ-फागुन। तुम्हारा हर एक दिन, हर एक मौसम जिंदगी है, ताजगी है, हंसी-खुशी से भरा है और हम दौड़ते-भागते शहरों में बूढ़े हो चले...।

वो भरी दुपहरी में मां-बाप का डांट-डपटकर सुलाना। उनकी आंख लगते ही हमारा घर से भाग जाना। बगिया में यारों की महफिल जम चुकी होती थी या सब एक-एक कर घरवालों से नजरें चुराकर जुट रहे होते थे। गिल्ली-डंडा, गिट्‌टक, लच्ची-डांड, कंचे (गोली) खेलना। चीथड़ों को सिलकर बनाई गई गेंद। आम-अमरूद, बेल, फरेंद-जामुन, अमरा, अंबार तोड़कर खाते रहना। आज के डिजीटल बच्चे अपनी हाइट के बराबर पेड़ पर भी शायद ही चढ़ पाते होंगे? धूल फांकते, धूप खाते, ताल में नहाते और बरसात में भीगते जाने कब वक्त आ गया सबकुछ छोड़कर आने का। वो चकरोट, खलिहान, नहर, पोखर, ताल-तलैया, मीलों तक परती पड़े खेत, उतने ही कोठार-बखार भर देने को आतुर फसलों से लहलहाते खेत। वो फटेहाल अमीरी, हमउम्रों का झुंड...। सब छूट गया सिर्फ एक नौकरी के लिए...। बच्चों की अच्छी पढ़ाई के लिए, बीमार और बूढ़े मां-बाप की दवाई के लिए...। ईएमआई के लिए...। वरना क्या नहीं है हमारे गांवों के पास। हम गांवों में शहरों जैसी सुविधाएं देने के बजाय, गांवों को शहर बनाते रहे। अब शहर गांव के गांव, खेत के खेत लीले जा रहे हैं...।

खैर, बात उसकी, जिस पर तेरा जिक्र आया, तेरी कहानी याद आई और मुझमें मेरा गांव उतर आया...। ऑफिस में दोपहर का सामूहिक भोज चल रहा था। यूं तो रूटीन है, लेकिन आज राजस्थानी जायकों के बीच था यूपी(पूर्वांचल) का स्वाद। उसने अपने हमसफर के बिना ही सुर्खियां बटोरी। राजस्थान डीबी डिजिटल की वीडियो टीम को हेड कर रहे वेदकांत शर्मा जी बिना लिट्‌टी के चोखा लाए थे। ब्रज प्रदेश के रहने वाले हैं। बकमाल! क्या हुनर पाया है शर्मा जी ने। उनके आगे अच्छे-अच्छे खानसामे पानी भरें। कुछ भी बनवा लीजिए, जनाब! अंगुलियां चाटते रह जाएंगे। पूर्वांचल का लिट्‌टी चोखा, अवध का भौरी भर्ता और राजस्थान का दाल-बाटी। इन्हीं जायकों के बखान के बीच चर्चा और गंवई होती गई। डीबी डिजिटल भोपाल के साथी जनार्दन पांडेय जी भी आजकल जयपुर आए हुए हैं। होनहार पत्रकार हैं। डिजिटल पत्रकारिता और युवा रीडर्स की पंसद, नपसंद बखूबी समझते हैं। सोनभद्र के हैं, सो भद्र तो हैं ही। पांडेय जी ने लकड़ी कंडे से जलते चूल्हे, नई नई ब्याई गाय-भैंस के पेउस की खिंझड़ी (खीस), नियाई की आग में दिनभर औटते दूध-दही, देसी घी की बातें छेड़ी तो मेरे भीतर दुबका बैठा गांव कुलबुला उठा और मैं खुद को फिर सड़क से उतरती उसी पगडंडी पर पाया। शाम का धुंधलका...। छोर पर बने घरों में टिमटिमाती रोशनी और तकरीबन हर रसोई से आ रही एक जैसी खुशबू। वो मिट्‌टी की महक, वो ताजे गोबर की गंध...।

गांव शुद्धता, सत्यतता की गारंटी है और शहर तुम मिलावट का गाेरखधंधा, भ्रष्टाचार हो...।

आज इतना ही...। गांव नहीं जा पा रहे तो जसवंत सिंह की ये गजल सुनिए और अपने गांव को जी लीजिए...।

वक्त का ये पारिंदा रुका है कहां

मैं था पागल जो इसको बुलाता रहा

चार पैसे कमाने मैं आया शहर,

गांव मेरा मुझे याद आता रहा...।

बाकी जो है सो हइय है...। विकास की फाइलें टेबल टेबल नाच रही हैं... आजकल तो हर तरफ एक ‘फाइल्स’ की भी बड़ी धूम है...। जमीन पर कुछ हो न हो...।

 

मंगलवार, 20 मार्च 2012

सरहद पर होली

सरहद पर दोनों ओर माहौल जलसे जैसा था। दोनों मुल्कों में अपने-अपने जज्बाती गीत बजाए जा रहे थे। पुरजोर आवाज में नारे लगा रहे लोग अपनी-अपनी देशभक्ति का मुजायरा कर रहे थे। कुल जमा भारत-पाकिस्तान सीमा (अटारी-वागा अंतरराष्ट्रीय सीमा) पर परेड देखने आया हर शख़्स देशभक्ति की दरिया में गोते लगा रहा था।

लेकिन तकरीबन 200 मीटर के फासले पर 30 फीट ऊंचे द्वार पर गांधी और जिन्ना के चेहरे उतरे हुए हैं। ठीक एक-दूसरे के सामने हैं मगर नजरें मिलाने की हिम्मत शायद दोनों में भी नहीं। हिन्दुस्तान की तक़सीम के ये दोनों चश्मदीद गवाह हैं, लेकिन आज शायद एक दूसरे से शर्मिंदा हैं। दोनों मुल्कों के सूरत-ए-हाल चीख-चीख कर ये बता रहे हैं कि जिन्ना को न पाक पाकिस्तान मिला और गांधी को न उनके सपनों का भारत।

मैं, अपने तीन सहयोगियों के साथ अमृतसर के लिए निकला था। सरहद की यह मेरी तीसरी यात्रा थी। होली का दिन था, शाम की परेड देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ा था। हाथों में तिरंगा लिए दर्शक बडे़ उत्साहित थे। हों भी क्यों न। सामने पाकिस्तान है! हम भारत के लोग अपने कर्तव्यों के प्रति लगनशील, ईमानदार हों न हों, भावनात्मक मसलों में हमारा जज्बा देखने लायक होता है। ऊंच-नीच, अमीरी-गरीबी के दलदल में गर्दन तक धंसे लोगों में एकता व अखंडता की नदियां बह रही थीं। इसी खास जज्बे से भरी भीड़ ऐसा प्रदर्शन कर रही थी जैसी गेट खोल दिया जाए तो पलक झपकते ही लाहौर, इस्लामाबाद पर कब्ज़ा कर लेगी!

पाकिस्तान से उठते नारों का उससे दुगनी तेज आवाज में जवाब देने का प्रयास किया जा रहा था। इस तरफ बिंदास युवतियां, महिलाएं गीतों पर नृत्य कर रही थीं। पर जीरो लाइन के उस पार लोग कम थे। खासकर महिलाएं। पर्दे की ओट से संसार देखने की आदी वे अपने स्थान पर बैठ कर अपने पुरुष देशवासियों का साथ निभा रही थीं। शायद उनका समाज सड़क पर बेहुदे प्रदर्शन की इजाज़त नहीं देता।

एक-दूसरे को खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए पैर पटकते बीएसएफ और पाकिस्तानी रेंजर्स के जवान अपने-अपने झंडे उतारने लगे। इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी झेलने वाले दो मुल्कों की सरहद पर यह तमाशा देख कर सूरज भी डूबने लगा। जाते-जाते वह जैसे हमें लानत दे रहा था कि अलग-अलग धरती पर भी सकून से नहीं रह पाते। मुझे देखो, मैं उगता भारत में हूं, छिपता पाकिस्तान में। पाकिस्तान में छिपे बगैर हिन्दुस्तान में सवेरा क्या संभव है?

खैर, बैंड-बाजा-बारात के माहौल में शक्ति प्रदर्शन का दिखावा खत्म हुआ। देश भक्ति के ज्वर में जो अभी तक तप रहे थे, वे रुख़सत होने लगे।

शनिवार, 3 मार्च 2012

जागो मतदाता जागो भाग-2

जागो मतदाता जागो
अपनी जिम्मेदारी से मत भागो।
तुमरे वोटवा के बल पर
हत्यारे, लुटेरे, डकैत बलात्कारी,
छिन भर में बन जाते माननीय,
तुम्हरी हालत सदा के लिए रहती,
क्यों फिर दयनीय।
पांच साल में हजार पति बन जाता लखपति,
लखपति हो जाता है करोंड़ों का पति,
करोड़पति खेले अरबों में,
तुमरे गांव में बुनियादी सुविधाएं,
आईं न बरसों में।
कुछ कह दो तो संसद का अपमान बतावें,
लोकतंत्र के मंदिर में खुद जूता.चप्पल चलावें।
दिल नहीं दिमाग से सोचो,
जनता की अदालत का फैसला सुनाओ,
ऐसे घोटालेबाजों को अब धूल चटाओ।
उत्तर प्रदेश में अंतिम चरण और गोवा के मतदान के साथ ही पांच राज्यों में चुनावी महासमर आज खत्म हो जाएगा। देखिए छह मार्च को यूपी की तकदीर किस करवट बैठती है।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जागो वोटर जागो

जागो मतदाता जागो,
भागो पोलिंग बूथ भागो।
तुम मतदाता ही नहीं, दाता हो,
नेताओं के भाग्य विधाता हो।
क्योंकि
जीतते ही उनकी कारों पर
काले शीशे चढ़ जाते हैं,
वोटर फिर अंधेरे में गुम हो जाते हैं।
तुमने जिनके हाथों में सौंप दी सत्ता,
वे न हुए कभी तुमसे बाबस्ता।
चुनाव के पहले फिरे घबराए, घबराए
जीते गए तो गिरगिट भी शर्माए।
प्रचार के दौरान अपनाते हथकंडे,
तुम हक मांगो तो चलवाएं डंडे।
सदन में सार्थक बहस करे
या देखे पोर्न
सोचिए जरा, चुन रहे हैं कौन,
देश का विकास, न समाज को दिशा,
सिर्फ सुधारे अपनी दशा।
जाति, धर्म, अगड़ा और पिछड़ा,
इनके नाम पर तुमको बांटे।
पांच साल तक खाई मलाई,
अब झूठे वादों की झड़ी लगाई।
इसलिए
ऐसा न चुनो कि पछताना पड़े,
पांच साल तक हाथ मलना पड़े।
अपनी सुनो, सही को चुनो,
अपने हाथों अपनी तकदीर बुनो।
आज उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पांचवें चरण का मतदान है। यूपी के गरीब, अनपढ़ व जाति
-धर्मों में बंटे मतदाताओं के लिए।